इस रात को

इस रात को शब्दों में ढालकर कागज़ पे मढ़ना चाहता हूँ,मैं इन बादलो के पीछे छुपे चाँद से मिलना चाहता हूँ. वर्ष बीत गए इत्मीनान से बैठ के चींटियों को

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अंतिम ऊँचाई

~ कुँवर नारायण कितना स्पष्ट होता आगे बढ़ते जाने का मतलब अगर दसों दिशाएँ हमारे सामने होतीं, हमारे चारों ओर नहीं। कितना आसान होता चलते चले जाना यदि केवल हम

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