मेरा मित्र गधा
कुछ दिनों से मैं गधों के साथ घूम रहा हूँ। आप यह मत समझिए कि मैं अपने मित्रों की बात कर रहा हूँ। मैं सच में जीते-जागते, चार पैरों पर चलने वाले, मालिक का बोझ उठाने वाले, उपहास करने वालों को दुलत्ती टिकाने वाले गधों की बात कर रहा हूँ।
अरे, पर क्यों भाई? ऐसा क्या हो गया कि तुम्हें गधों के साथ घूमना पड़ रहा है? सब ठीक तो है ना?
“हाँ भाई, सब कुछ ठीक है। असल में, कुछ दिन पहले मैं पास की ही एक पहाड़ी पर ट्रेकिंग के लिए गया था। वहाँ निर्माण कार्य ज़ोर-शोर से चल रहा था। मैंने देखा कि गधे बड़े इत्मीनान से काम कर रहे थे। उनके कंधों पर भारी सामान लदा था, लेकिन चेहरे पर एक शिकन तक नहीं। बस वहीं से मेरे मन में यह ख्याल आया कि क्यों न इन मेहनतकश जीवों के साथ थोड़ा समय बिताया जाए और उनकी जिंदगी को करीब से समझा जाए।”
मुझे पहले लगता था कि गधे बड़े जिद्दी और आलसी प्रवृत्ति के होते हैं। कहानियों में यही तो सुनते आए हैं। और इसलिए गधे का नाम सुनते ही हमें अपने मित्रों की याद आ जाती है। पर धीरे-धीरे मेरा भ्रम टूटने लगा। गधे तो बड़े शांत, धैर्यवान और ज़िम्मेदार निकले। सामान लादने का इशारा होते ही बिना शिकायत चल पड़ते और कठिन से कठिन रास्तों को सूझबूझ से पार कर जाते।
मैंने उनसे कहा, “इसमें क्या बड़ी बात है? अपने कॉर्पोरेट जीवन में हम भी तो यही करते हैं।”
गधे ने कहा, “अगर तुम भी यही करते हो, तो हम दोनों में अंतर क्या है, भला?”
“अरे, अंतर कैसे नहीं है? मैं इंसान हूँ, और तुम जानवर। इंसान तुम्हें अपने इशारे पर नचाते हैं।”
गधे ने कहा, “इंसान तो तुम्हें भी अपने इशारे पर नचाते हैं।”
मुझे समझते देर नहीं लगी कि गधे का इशारा श्रीमती जी की तरफ था। मैं आगबबूला हो गया। इस गधे की इतनी हिम्मत! और मैंने आव देखा ना ताव, एक घूँसा मार दिया गधे के पेट पर।
गधा भी स्वाभिमानी था। उसने यह अपमान बर्दाश्त नहीं किया और अपनी दुलत्ती से मुझे रूबरू कराया। मुझे दिन में तारे नजर आ गए। थोड़ी देर आराम करने के बाद जब मैं उठा, तो गधा वहीं अपना बोझ लिए खड़ा था और मुस्कुरा रहा था।
मैंने उससे कहा, “मान गए तुम्हें, भाई। तुम्हारे अंदर वे सारे गुण हैं, जो एक इंसान को अपनाने चाहिए—बिना शिकायत काम करते हो, जुझारू हो, पर अपने आत्मसम्मान पर कोई आंच नहीं आने देते। साथ ही साथ, सद्भावना भी तुममें कूट-कूट कर भरी है। मुझे मारने के बाद भी मेरा हाल-चाल देखने के लिए खड़े हो।”
गधा मुझे कुछ देर तक एकटक देखता रहा। फिर उसने कहा, “देखो मित्र, ये सब LinkedIn वाली बकलोली यहाँ मत करो।” ऐसा कहकर उसने मुझे फिर एक लात मारी। पर इस बार मैं तैयार था। मैं उछलकर उसके ऊपर बैठ गया और उसके दोनों कान पकड़कर आपस में गाँठ बाँध दी। फिर करतब करते हुए मैं उतरा और पास पड़े कुछ तिनके उसकी नाक में डाल दिए। गधा इस अकस्मात हमले से भौंचक्का रह गया। बिलबिलाते हुए उसने अपने दाँत मेरे पैरों में घुसा दिए।
हाय रे! अब तो टिटनेस का इंजेक्शन लगेगा। डॉक्टर को क्या बताऊँगा? कि मुझे एक गधे ने काट लिया। लोग क्या कहेंगे? कि गधे से कटवाकर आ गया ये।
हम दोनों वहीं बैठे-बैठे अपने-अपने समाज में होने वाले तिरस्कार की कल्पना कर रहे थे। तभी सामने के एक वृक्ष से किसी के हँसने की आवाज़ आई। कुछ बंदर वहाँ बैठे सारा तमाशा देख रहे थे।
मुखिया बंदर बोला, “मैं ना कहता था, हमारे पूर्वजों का इंसान बनने का फैसला कितना गलत था। अच्छा-खासा बंदर था ये। अब गधा बन गया है। क्या फर्क है इन दोनों में? दूसरों का बोझा उठाते हैं, दिनभर काम करते हैं ताकि रात को चैन से सो सकें। कोई थोड़ा सा भी छेड़ दे, तो पगला जाते हैं। इनसे तो हम कितने अच्छे हैं। जब मन करता है, सोते हैं। जब मन करता है, उठते हैं। शेर भी हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता। समय आ रहा है Planet of the Apes का।”
पहले तो मैंने और गधे ने उसे चुपचाप देखा। फिर मैंने सोचा कि एक दिन में दो प्रजातियों से तिरस्कार नहीं सहूंगा। गधे को भी ऐसा ही लगा। हमने पास पड़ी रस्सी उठाई। गधे ने अपनी दुलत्ती से एक पत्थर लुढ़काया, और मैंने तेजी से रस्सी फेंककर मुखिया बंदर को जकड़ लिया।
बंदर छटपटाने लगा और बोला, “अरे! ये क्या कर रहे हो?” गधा अपनी खास “हाहाहा” वाली स्टाइल में हँसने लगा। बाकी बंदर डर के मारे पेड़ों पर चढ़ गए। हाथ-पैर जोड़ने के बाद हमने मुखिया बंदर को छोड़ा। शायद इसी दिन के बाद बंदरों ने धरती पर कब्जा करने का इरादा छोड़ दिया।
इस घटना का श्रेय न मैं लेना चाहूँगा, न मेरा मित्र गधा। हम दोनों अपने-अपने रास्ते चल दिए। और तभी से मैं इन गधों के साथ घूम रहा हूँ।