रात और बारिश
रात वही है, चाँद वही है,
बादलों की ओट में छिपा कहीं है।
बूंदों की सरगम, राग वही है,
पर आज इन हवाओं में खुशबू नई है।
बारिश की बूँदें वही गीत गुनगुनाती,
धरती की मिट्टी वही महक जगाती।
हवाएँ वही हैं, वही ठंडक लहराती,
खुद में कुछ नया, कुछ पुराना तराना छुपाती।
घड़ी की सुइयाँ वैसे ही रेंगतीं,
वही आधी रात, वही खामोशी की चादर बुनतीं।
फिर भी दिल के किसी कोने में दबी,
आज कुछ अलग है, जैसे कोई चाह है जगी।
हर दृश्य वही, फिर भी ताजगी का एहसास,
हर बूंद वही, पर है एक नई प्यास।
इस रात, इस बारिश, इस सन्नाटे की छाँव में,
शायद कोई नया आसमान खुला है राहों में।
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लौटते चाहत के उस उत्साह को सलाम!